जनसंख्या विस्फोट और खाद्य संकट
जनसंख्या विस्फोट और खाद्य संकट आज दुनिया के सबसे गंभीर मुद्दों में शामिल हो चुके हैं। जैसे-जैसे जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, वैसे-वैसे खाद्य संसाधनों पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है। यह समस्या केवल विकासशील देशों तक सीमित नहीं रही, बल्कि वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बन गई है। अगर समय रहते इस पर काबू नहीं पाया गया, तो आने वाले वर्षों में भुखमरी, कुपोषण और सामाजिक अस्थिरता जैसे गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।
वर्तमान समय में जब दुनिया की आबादी आठ अरब के पार पहुंच चुकी है, तब एक बड़ा सवाल हमारे सामने खड़ा है – क्या यह धरती इतनी सक्षम है कि वह सबका पेट भर सके? संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार भारत अब दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है, लेकिन इतने बड़े मानवीय संसाधन के बावजूद देश की एक बड़ी आबादी आज भी दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रही है।
भारत के पास कुल भूमि का केवल 2.5 प्रतिशत हिस्सा है, और जल संसाधनों में भी हिस्सेदारी सिर्फ 4 प्रतिशत के करीब है, लेकिन दुनिया की कुल आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा भारत में रहता है। चिंता की बात यह है कि देश की 60 प्रतिशत भूमि खेती योग्य होने के बावजूद, लगभग 20 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता। यह विडंबना जनसंख्या विस्फोट और असमान संसाधन वितरण की हकीकत को उजागर करती है।
एशिया अकेले वैश्विक आबादी का 61 प्रतिशत बोझ ढो रहा है, जिसमें भारत सबसे आगे है। बढ़ती जनसंख्या के चलते आज गरीबों की संख्या में तेजी से इज़ाफा हो रहा है, जिससे भुखमरी, बेरोजगारी, जल संकट, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और अपराध जैसी समस्याएं भी तेज़ी से बढ़ रही हैं। भारत की आबादी जितनी तेज़ी से बढ़ रही है, उस रफ्तार से खेती योग्य ज़मीन घट रही है।
‘वेस्टलैंड एटलस 2019’ के अनुसार, पंजाब में 14 हजार हेक्टेयर और पश्चिम बंगाल में 62 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि का ह्रास हो चुका है। उत्तर प्रदेश जैसे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में हर साल औसतन 48 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि विकास कार्यों की भेंट चढ़ रही है। वर्ष 1992 से 2013 के बीच ग्रामीण परिवारों की खेती योग्य भूमि 11.7 करोड़ हेक्टेयर से घटकर 9.2 करोड़ हेक्टेयर रह गई है।
जलवायु परिवर्तन भी इस संकट को और गहरा बना रहा है। एक ओर जहां सूखे, बाढ़ और असामान्य मौसम खेती पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर किसान कृषि से दूर होते जा रहे हैं। यह स्थिति भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए गहरी चिंता का विषय है।
जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सरकारों ने कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन दो बच्चों की नीति जैसे सुझाव अब राष्ट्रीय नीति स्तर पर ज़रूरी होते जा रहे हैं। जनसंख्या की गति को न रोका गया, तो भविष्य में योजनाओं का लाभ समान रूप से पहुंचाना असंभव हो जाएगा।
विश्व भूख सूचकांक 2022 की रिपोर्ट बताती है कि भारत की 16.3 प्रतिशत आबादी कुपोषित है। पांच साल से कम उम्र के 35.5 प्रतिशत बच्चों का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता, और 3.3 प्रतिशत बच्चों की मौत पांच साल से पहले हो जाती है। ये आंकड़े न केवल भुखमरी बल्कि कुपोषण की भी गहराई को दर्शाते हैं।
खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड’ के अनुसार, दुनिया में अभी भी 80 करोड़ से ज्यादा लोग भूख से जूझ रहे हैं और 310 करोड़ लोगों की पहुंच स्वस्थ आहार तक नहीं है।
दुनिया में 30 प्रतिशत से अधिक अनाज बर्बाद हो जाता है। यह बर्बादी खुद खाद्य असुरक्षा को जन्म दे रही है। जब तक अनाज उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ उसकी बर्बादी रोकने पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक वैश्विक भुखमरी मिटाना मुश्किल होगा।
आज आवश्यकता है वैश्विक स्तर पर सामूहिक प्रयासों की। न केवल खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने की, बल्कि खाद्य वितरण, भंडारण, कृषि भूमि के संरक्षण, और जनसंख्या नियंत्रण की भी रणनीति बनाने की।
दुनिया के विकसित और विकासशील देशों को यह समझना होगा कि सिर्फ तकनीकी प्रगति और विकास की रफ्तार दिखाकर समस्याएं नहीं सुलझाई जा सकतीं। जब तक पेट खाली हैं, विकास अधूरा है।